बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 शिक्षाशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
महत्वपूर्ण तथ्य
माध्यमिक विद्यालय स्तर पर शिक्षण का माध्यम मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा होनी चाहिए।
माध्यमिक विद्यालय में संख्या की अपेक्षा गुणात्मक विकास पर बल दिया जाए।
माध्यमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम समाप्त हो जाने पर केवल एक सार्वजनिक परीक्षा ली जाए। वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं का समावेश किया जाये।
शिक्षण कार्य का मूल्यांकन अंकों में न करके प्रतीको में दिया जाए।
माध्यमिक स्तर पर माध्यमिक प्रणाली लागू की जाये।
ऐसी शिक्षा देने का उद्देश्य रोजगारपरक शिक्षा हो तथा पाठ्यक्रम लचीला हो।
पाठ्यक्रम छात्रों की योग्यता, क्षमता के अनुरूप हो।
संगठन तथा पाठयक्रम में एकरूपता के लिए एक केन्द्रीय माध्यमिक विद्यालय शिक्षा परिषद होनी चाहिए।
अनुसूचित जाति के छात्रों को छात्रवृत्ति दी जाये। तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षा पर बल दिया जाय।
विद्यालयों में प्रशिक्षित शिक्षक नियुक्त किये जाये। सभी बालकों को विकास के समान अवसर दिये जाये। परीक्षा प्रणाली में अपेक्षित सुधार और परिवर्तन किया जाए।
सह शिक्षा का प्रबन्ध किया जाये।
गृह विज्ञान के लिए प्रयोगशाला स्थापित की जाए।
छात्रों को समय-समय पर निर्देशित किया जाए।
छात्रों को जीवन से सम्बन्धित लक्ष्यों को पूरा करने के उपाय बताये जाए।. निर्धन व योग्य छात्रों की मदद की जाए।
बालकों की अपनी रुचि अनुसार विषयों को चुनने में प्राथमिकता दी जाये।
माध्यमिक स्तर पर बालकों का सामाजिक, नैतिक, मानसिक, शारीरिक विकास पर सम्पूर्ण रूप से ध्यान दिया जाये।
भारत में माध्यमिक शिक्षा के सूत्रपात करने का श्रेय यूरोपीय मिशनरियों को है।
18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मिशनरियों ने कुछ भागों में माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना का कार्य प्रारम्भ किया।
चार्ल्स वुड ने माध्यमिक विद्यार्थियों को अनुदान देने के लिए सहायता अनुदान प्रणाली अपनाने का सुझाव प्रस्तुत किया।
माध्यमिक शिक्षा के लिए प्रत्येक प्रान्त में माध्यमिक परिषद की स्थापना की जाए।
1929 ई. में हींग समिति में माध्यमिक स्तर पर व्यवसायिक विषयों पर बल दिया।
माध्यमिक शिक्षा के विकास के लिए 1948 ई. में ताराचन्द की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की गई।
1952-53 में माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन किया गया।
1947 में 6000 माध्यमिक विद्यालय चल रहे थे।
माध्यमिक शिक्षा, शिक्षा का वह स्तर है जो बालको को जीवन के निकट लाती है। तथा उसे जीविकोपार्जन योग्य बनाती है।
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- अध्याय - 17 प्रारम्भिक एवं माध्यमिक शिक्षा की समस्यायें
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- ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न
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